Prashant Kishor: भारतीय राजनीति के चाणक्य
प्रशांत किशोर एक ऐसा नाम है जो भारतीय राजनीति में पिछले एक दशक से लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। उन्हें भारतीय राजनीति का चाणक्य कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपनी रणनीतिक कौशल और अनूठी चुनावी योजनाओं से कई राजनीतिक दलों को सत्ता के शिखर पर पहुंचाया है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
प्रशांत किशोर का जन्म 1977 में बिहार के बक्सर जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिहार में ही पूरी की। बाद में उन्होंने हैदराबाद के जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की। किशोर ने अपने करियर की शुरुआत सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में की थी और वे संयुक्त राष्ट्र के साथ भी जुड़े रहे। लेकिन उनकी पहचान एक चुनावी रणनीतिकार के रूप में तब बनी जब उन्होंने 2011 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए काम करना शुरू किया।
राजनीतिक करियर की शुरुआत
प्रशांत किशोर ने 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव अभियान का संचालन किया। उनका ‘चाय पर चर्चा’, ‘3D रैली’ और ‘मैं भी चौकीदार’ जैसे अभियान उस समय बहुत चर्चित रहे। इन अभियानों ने न केवल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को भारी बहुमत दिलाया, बल्कि मोदी को भी एक मजबूत और करिश्माई नेता के रूप में स्थापित किया।
आई-पैक की स्थापना
2015 में प्रशांत किशोर ने इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी (आई-पैक) की स्थापना की, जो एक चुनावी रणनीति और जनसंपर्क कंपनी है। आई-पैक का उद्देश्य राजनीतिक दलों को चुनावी रणनीतियाँ और जनसंपर्क अभियान तैयार करने में मदद करना है।
आई-पैक के तहत, प्रशांत किशोर ने कई राज्यों में चुनावी अभियान चलाए और विभिन्न दलों के लिए सफलता दिलाई। 2015 में बिहार विधानसभा चुनावों में उन्होंने नीतीश कुमार के लिए काम किया और उनके महागठबंधन को भारी बहुमत से जीत दिलाई। इसी तरह, 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में उन्होंने कांग्रेस के लिए काम किया, हालांकि इस बार सफलता उनके हाथ नहीं लगी। फिर भी, उनका नाम भारतीय राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण चुनावी रणनीतिकारों में गिना जाने लगा।
अन्य महत्वपूर्ण अभियान
प्रशांत किशोर ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए 2021 के विधानसभा चुनावों में भी काम किया, जहां उनकी रणनीतियों ने तृणमूल कांग्रेस को भारी बहुमत से जीत दिलाई। इसके अलावा, उन्होंने आंध्र प्रदेश में वाईएस जगन मोहन रेड्डी, पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह, और तमिलनाडु में एम.के. स्टालिन के लिए भी सफल चुनावी अभियान चलाए।
जन सुराज अभियान
हाल ही में प्रशांत किशोर ने बिहार में “जन सुराज” नामक एक पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य राज्य की राजनीति में सुधार और जनता की समस्याओं को हल करना है। वे इस अभियान के तहत बिहार के विभिन्न जिलों का दौरा कर रहे हैं और लोगों से सीधे संवाद कर रहे हैं। उनका यह प्रयास राजनीति में बदलाव लाने और एक नई राजनीतिक संस्कृति स्थापित करने का है।
आलोचनाएँ और चुनौतियाँ
हालांकि प्रशांत किशोर की रणनीतियाँ अक्सर सफल रही हैं, लेकिन उनकी कार्यशैली को लेकर विवाद भी रहे हैं। कुछ लोग उन पर आरोप लगाते हैं कि वे चुनावी अभियानों को केवल व्यावसायिक दृष्टिकोण से देखते हैं और उनकी प्राथमिकता केवल चुनाव जीतना होती है। इसके अलावा, उनके कई अभियान असफल भी रहे हैं, जैसे कि 2017 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और 2022 का पंजाब विधानसभा चुनाव। इन विफलताओं के बावजूद, प्रशांत किशोर ने अपनी क्षमता और कौशल से भारतीय राजनीति में एक अद्वितीय स्थान बना लिया है।
निष्कर्ष
प्रशांत किशोर भारतीय राजनीति में एक ऐसे रणनीतिकार के रूप में उभरे हैं, जिन्होंने पारंपरिक चुनावी अभियानों से हटकर नए तरीकों और तकनीकों का उपयोग किया। उन्होंने राजनीति को एक नए दृष्टिकोण से देखा और उसे बदलने की कोशिश की। आज, वे न केवल एक सफल चुनावी रणनीतिकार हैं, बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी अपनी पहचान बना रहे हैं। उनकी कार्यशैली, सोच और निर्णय लेने की क्षमता उन्हें भारतीय राजनीति का चाणक्य बनाती है। आने वाले समय में उनके कदम भारतीय राजनीति को किस दिशा में ले जाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।